कलम, तलवार और त्याग भाग-२ ऐतिहासिक पात्रों की गौरव-गरिमा को रेखांकित करता, साहित्यिक शैली में लिखी गई एक रोचक किताब है। इसके अंतर्गत राजा टोडरमल, श्री गोपाल कृष्ण गोखले, गेरीबाल्डी, मौ. बहीदुद्दीन सलीम, सर रामकृष्ण गोपाल भांडारकर, बद्दुदीन तैयबजी, सर सैयद अहमद खां, मौलाना अब्दुल हलीम शरर और रेनाल्ड्स की संक्षिप्त जीवनी एवं उपलब्धियों का जिक्र है। रोलान्ड्स ब्रिटिश पेंटर थे और गेरीबाल्डी नये इटली के जन्मदाता थे। बाकी की विभूतियाँ भारतीय इतिहास की वह ज्योतिपुंज है जिसके व्यवहार-आचरण की रोशनी से भविष्य युगों-युगों तक लाभान्वित होता रहेगा। इन महापुरुषों ने अपनी कार्यकुशलता से समाज के सामने जो नजीर पेश किया वह सदैव अनुकरणीय रहेगा। भाग एक के अनुपात में इस भाग में लेखक ने ऐसे पात्रों का चयन ज्यादा किया है जो अपने कलम के प्रताप से गौरव-गरिमा के अधिकारी हुये। प्रेमचंद ने उपरोक्त महापुरुषों की पड़ताल बहुत ही लगन से किया है, ताकि पाठक इनके समूचे व्यक्तित्व से परिचित हो सके। वैसे तो सारे पात्रों का कार्यक्षेत्र अलग-अलग रहा है, लेकिन इन सब में जो सबसे सामान्य बात थी, वह थी इनकी संघर्षशीलता। किसी कवि ने लिखा है कि ‘कष्ट कंटकों में है, जिसका जितना सुमन खिला। गौरव-गंध उन्हीं को यत्र तत्र सर्वत्र मिला।’ कदाचित प्रेमचंद ने इस किताब की रचना युवाओं को ध्यान में रखा कर किया था ताकि वे इन महापुरुषों के जीवन-आचरण से लाभान्वित हो सके। और सही अर्थों में उनका यह प्रयास सार्थक एवं सराहनीय कहा जा सकता है।