गोदान - Premchand

गोदान

By Premchand

  • Release Date: 2016-12-13
  • Genre: Fiction & Literature

Description

गोदान हिन्दी साहित्य का काफी लोकप्रिय और बहुचर्चित उपन्यास है। कहते हैं अगर प्रेमचंद से सिर्फ गोदान लिखा होता और कुछ न लिखा होता, तब भी उनकी ख्याति उतनी ही होती जितनी उनके पूरे साहित्य यात्रा को लेकर है। यह है गोदान के माध्यम से प्रेमचंद की देन। गोदान भारतीय कृषक समाज का आईना है। महाजनी सभ्यता तथा सामंती समाज की नंगी हकीकत गोदान में उभर कर आई है। इस उपन्यास का सबसे मजबूत पक्ष है प्रेमचंद के विचार, जो विभिन्न पत्रों के माध्यम से निकलते हैं जैसे- “रूढ़ियों के बंधन को तोड़ो और मनुष्य बनो, देवता बनने का ख्याल छोड़ो। देवता बनकर तुम मनुष्य न रहोगे।” यह है प्रेमचंद की दृष्टि। इस उपन्यास का नायक होरी जब कहता है कि “हम राज नहीं चाहते, भोग-विलास नहीं चाहते, खाली मोटा-झोटा पहनना, और मोटा-झोटा खाना और मरजाद के साथ रहना चाहते हैं। वह भी नहीं साधता।” तो पता चलता है कि भारत में एक कृषक-गृहस्त की क्या सदइच्छायें हैं? और वह क्यों कर पूरी नहीं होती! चूँकि जहाँ शोषण का रूप इतना त्रासदपूर्ण हो कि एक किसान मजदूर होकर मरे, वहाँ मोटा-झोटा खाना और पहनना भी कितनी बड़ी लालसा है इसका हम सहज अनुमान कर सकते हैं। इस उपन्यास में जहाँ किसान-मजदूर के त्रासदपूर्ण जीवन है, सामाजिक हकीकत का नंगा चित्र है, वहीँ पात्रों का संतुलन भी पूरी योजना के साथ है। उपन्यास के एक छोर पर कड़वा यथार्थ है तो दूसरे किनारे पर एक त्यागपूर्ण आदर्श भी है। जो कि उपन्यास को रोचक और सौन्दर्यपूर्ण बनता है।