महात्मा शेखसादी प्रेमचंद द्वारा लिखित शेखसादी की जीवनी है। शेखसादी शीराज के रहने वाले थे, जो कि ईरान का एक भाग है। शेखसादी मूलतः फारसी कवि थे। स्वभाव से भ्रमणशील सादी ने दुनिया बहुत देखी थी। इसलिये दुनिया के ऊँच-नीच को बेहतर ढंग से समझते थे। इसीलिये अपनी शिक्षाओं में उन्होंने आडम्बर का विरोध किया। वे ज्ञान साधना को श्रेष्ठ मानते थे, लेकिन ऐसे ज्ञान को जो तर्क पर आधारित हो। सद्शिक्षा, सद्विचार, और निर्भीकता उनके जीवन का सिद्धांत था। सादी हमेशा कहा करते थे कि ‘विद्या पढ़ के उसका अनुशीलन न करना, जमीन खोदकर उसमें बीज न डालने के सामान है।’ वे ज्ञान के गत्यात्मकता में यकीन करते थे। उन्होंने अपने समय के बादशाहों की खूब खबर ली थीं, जो अपने उद्देश्य से भटके हुये थे। उनका मानना था कि ‘राजा प्रजा की रक्षा के लिये होता है न कि प्रजा राजा की बंदगी के लिये।’ गुलिस्तां और बोस्तान उनकी प्रसिद्ध और लोकप्रिय रचनाएँ है। वैसे उनके ग्रन्थों की संख्या लगभग १५ है। सादी अपने समय से बहुत आगे के इंसान थे। यूरोपीय आलोचकों ने इनकी तुलना यूरोपीय कवि होरेस से की है। प्रेमचंद ने बहुत लगन एवं परिश्रम से इस पुस्तक की रचना की है और विश्व की एक महान हस्ती का परिचय हिन्दी समाज से कराया है। शेखसादी जैसी विभूतियाँ किसी कालखंड में जन्म लेते हैं, लेकिन युग-युग के लिये नजीर बनती हैं। इस दृष्टि से महात्मा शेखसादी पुस्तक काफी महत्वपूर्ण है।