समर-यात्रा मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित राजनीतिक-चेतना पूर्ण कहानियों का संग्रह है। प्रेमचंद की अधिकाधिक रचना यात्रा १९१५ से १९३५ के बीच की है। यही समय भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और संघर्ष का भी है। प्रत्यक्ष रूप से प्रेमचंद पर स्वतंत्रता आन्दोलन का प्रभाव है, जो कि उनकी कहानियों और उपन्यासों में भरपूर मात्रा में देखने को मिलता है। प्रेमचंद की रचना-यात्रा जितनी सामाजिक है उतनी ही राजनैतिक भी। कदाचित प्रेमचंद ने हिंदी कथा-साहित्य के माध्यम से राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलन की तस्वीर खींची है। समर-यात्रा कहानी संग्रह की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसकी सारी कहानियां राजनैतिक चेतना से सम्पन्न होने के साथ स्त्री जागृति का सन्देश भी देती हैं। चाहे वह कहानी जेल हो, कानूनी कुमार हो, लांछन हो या क्रमशः ठाकुर का कुआं, शराब की दुकान, जुलूस, आहुति, होली का उपहार, अनुभव, समर-यात्रा सभी कहानियों की स्त्री पात्र राष्ट्रीय आन्दोलन को लेकर अपनी चेतना सम्पन्न उपस्थिति दर्ज करती है। १९२०-१९२५ के आस-पास प्रेमचंद की स्त्री पात्र यह कह सकी कि ‘जॉन के बदले गोविन्द बैठे क्या फर्क पड़ता है’ यह प्रेमचंद की ही नहीं सम्पूर्ण भारतीय समाज की बहुत बड़ी उपलब्धि थी। प्रेमचंद इन स्त्रियों की चेतना के माध्यम से भारतीय स्त्री जाति की अस्मिता को भी प्रतिष्ठित कर रहे थे प्रेमचंद की स्त्री पात्र इरादों से मजबूत और विचारों से स्पष्ट है। निसंदेह समर-यात्रा भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन को जानने का एक साहित्यिक दस्तावेज है।