मानसरोवर भाग-५ प्रेमचंद की कहानियों का संग्रह है। इस संग्रह में ग्रामीण और नगरियें दोनों तरह की कहानियाँ संकलित है। जिस परिवेश में प्रेमचंद कहानियाँ लिख रहे थे उस समय शहर और गाँव समाज के दो छोर, दो भाग या दो विपरितार्थक हिस्से या स्वभाव थे। जहाँ ‘मंदिर’ शीर्षक कहानी में ग्रामीण बजबजाहट है वहीँ ‘सोहाग का शव’ शीर्षक कहानी पढ़े-लिखे लेकिन भ्रष्ट, पतित मानसिकता को उजागर करता है। ‘पिसनहारी का कुआँ’ जनइच्छा, जनकल्याण की प्रतिनिधि कहानी है। वहीँ ‘इस्तीफा’ औपनिवेशिक अधीनता में भारतीय-श्रम पर मजाक का कीचड़। कजाकी, आत्म-संगीत और रामलीला जीवन के भाव पक्ष को उजागर करने वाली ऐसी कहानियाँ है। जिनके बिना जीवन भीतर से अधूरा है। उसकी आवाज ह्रदय के अतल ने निकल कर मन के ओसारे तक ही पहुँच पाती है। अगर हम गौर से नहीं सुनते तो वह आवाज ओसारे से फिसल कर फिर ह्रदय के अतल अँधेरे में पहुँच जाती है। फिर हूक बनकर या टीस बनकर जीवन-यात्रा को बेधती रहती है। इसी प्रकार ममता, आँसुओं की होली, कप्तान साहब और ईश्वरीय न्याय जैसी कहानियाँ मनुष्य जीवन के उन संबंधों की कहानियाँ है, जिसे हम चाहे जो नाम दे। लेकिन ये नाम, रूप से ऊपर होते हैं। इनका होना ही इनका सत्य है और न होना जीवन का अधूरापन। सारांश रूप में इस संग्रह में नगर-ग्राम से लेकर मनुष्य के अन्दर-बाहर को उजागर किया गया है।