हिंदी साहित्य जगत् में मुंशी प्रेमचंद का नाम बड़े आदर और सम्मान के साथ लिया जाता है। इनका वास्तविक नाम धनपत राय था। इनका जन्म 31 जुलाई, 1880 को बनारस शहर से करीब चार मील दूर लमही गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम मुंशी अजायब लाल था, जो डाक मुंशी के पद पर थे। इनके मध्यमवर्गीय परिवार में साधारणतया खाने-पीने, पहनने-ओढ़ने की तंगी तो न थी, परंतु इतना कभी न हो पाया कि इन्हें उच्च स्तर का खान-पान अथवा रहन-सहन मिल सके, इसी आर्थिक समस्या से मुंशी प्रेमचंद भी पूरी उम्र जूझते रहे। तंगी में ही उन्होंने इस नश्वर संसार को छोड़ा।
मातृत्व-स्नेह से वंचित हो चुके और पिता की देख-रेख से दूर रहने वाले बालक धनपत ने अपने लिए कुछ ऐसा रास्ता चुना, जिस पर आगे चलकर वे ‘उपन्यास सम्राट्, महान कथाकार, कलम का सिपाही जैसी उपाधियों से विभूषित हुए। उन्होंने बचपन से ही अपने समय की मशहूर और ऐयारी की पुस्तकें पढ़नी शुरू कर दीं। इन पुस्तकों में सबसे बढ़कर ‘तिलिस्मी होशरुबा’ थी। बारह-तेरह वर्ष की उम्र में उन्होंने अनेक पुस्तकें तो पढ़ ही डालीं, साथ में और बहुत कुछ पढ़ डाला, जैसे कि रेनाल्ड की ‘मिस्ट्रीज ऑफ द कोर्ट ऑफ लंदन’, मौलाना सज्जाद हुसैन की हास्य कृतियाँ, मिर्जा रुसवा और रतनशार के ढेरों किस्से।