कथा रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा लिखित गीतिशैली की पद्य रचना है। इस पुस्तक की एक विशेषता यह है कि भाषा बंगला है और लिपि देवनागरी है। इस तरह का प्रयास हिन्दी भाषी पाठकों को कवि गुरु के मूल लेखन से परिचय करना है। प्रकाशक ने अपने निवेदन में लिखा भी है कि हिन्दी भाषी पाठकों की मांग से हम इस तरह के प्रयोग के लिये उत्साहित हुये। इस पुस्तक के तहत प्रतिनिधि, ब्राह्मण, मस्तक विक्रय, पूजारिन, अभिसार, परिशोध.... राजविचार, गुरु गोविन्द.... विवाह विचारक, पणरक्षा आदि शीर्षक है। कवि ने भगवान बुद्ध से शुरू करते हुये ब्राहमण, उपनिषद की चर्चा से मध्य भारत और राजपूताना से लेकर गुरु गोविन्द सिंह तक उज्ज्वल मणि की प्रशस्ति की है। इसी पड़ताल के बहाने राजपूताने की होली, राजस्थानी विवाह, और पंजाब की वीरता को भी उजागर किया है। ध्यान साधनावस्था का मूल है। इसी ध्यान धारणा ने रवीन्द्रनाथ को एक समेकित और गहरी दृष्टि प्रदान की। वे जितने करीब से बंगाली सौन्दर्य को देखते थे, उतने या उससे भी कहीं ज्यादा सौन्दर्यपूर्ण निगाह से भारत को। यह उनकी दृष्टि की व्यापकता और गहराई ही थी कि इतिहास के एक ऐसे मोड़ से अपनी रचना का आरम्भ करते है जिसकी करुणा कई देशों के सामाजिक-धार्मिक जीवन का प्राण बन गया। कथा शीर्षक की सार्थकता यहीं है कि इसके भीतर निहित वर्णन क्रम भारतीयता के गौरव की आत्म छवि है।